...

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मन की दूरियाँ
मन की दूरियाँ,
तोड़ देती है इंसा को,
खटास आ जाती है, जब रिश्तो में,
तो पास पास होते हुए भी, इंसा
दूर हो जाता है हजारों मील।
तब कोई धागा प्यार का भी नहीं पता है उसे सील।
तब मन में बसता है सिर्फ, चारों तरफ कील ही कील।
जख्मी होकर, कभी-कभी या तो,
बिखर बिखर जाता है टूट,
मन के अरमां, रह जाते लूट-लूट।
चाहे पहन ले वह सूट बूट,
विक्षिप्त हो, रह जाता, मन कूट-कूट।
इस दुनिया की भीड़ में,
रह जाता, टूट-टूट।
‌‌ डॉ अनीता शरण।