...

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मायके में छुट्टियां...
हां मैं भी छुट्टियां लेती हूं
हां मैं भी मेरे घर जाती हूं
ना, मैं कॉलेज स्कूल में नहीं पढ़ती
ना, ऑफिस से छुट्टी की बात नहीं
मैं एक बहू हूं भारतीय
और मायके जाती हूं छुट्टियों पर

मायके जाना छुट्टी जैसा ही तो लगता है
वहां का हर इंसान दीवार सोफ़ा
प्रेम से मेरा स्वागत करता है
वहां की धूप मेरी परछाई को समेट कर रखती है
जब जाऊं तो मुझे एक सहेली मिलती है

मेरा वो कमरा, उस अलमारी में रखीं
मेरी चीज़ें जो समेटी थी कितनी ही यादें
आज भी रखा है मां ने मेरा तकिया कवर
मेरी डायरी मेरी वो लाल इंक पेन
स्कूल की वो फोटो, कॉलेज की किताबें

गुडिया जैसे कहती हो,
कोई नहीं खेलता अब मुजसे
मैं बोली वहां तो अनायास ही खेल जाते हैं
मेरे दिल से खेल कुछ बड़े बड़े
शिकायत भी लगा नहीं पाती
लड़कियां बड़ी होने के बाद

मायके से वापिस आना भी बड़ा कठिन है
एक तरफ दुख मायका छोड़ने का
दूसरी ओर ससुराल में पति का प्रेम
बुलाता हो जैसे
गर्मी की छुट्टियों के आखरी दिन हो जैसे
छुट्टियों के मज़े खत्म होने का दुख
किंतु स्कूल की सहेलियों को मिलने
का अलग हो मज़ा...

बस इसी असमंजस में पता ही नही चलता
कब टिकिट बुक हुई और मैं पहुंच गई वापिस
पति का हंसता चेहरा, सासू मां का प्यार
वापिस अच्छा लगता है सब
जवाबदारी जीवन की शुरू
गुडिया रह जाती है इंतजार करती
अगली छुट्टियों की मेरी

हां मैं भी छुट्टियां लेती हूं
हां मैं भी मेरे घर जाती हूं...











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