...

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अभी भी वक़्त है।
समझ जा आज तो छोड़ दे हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई।
आज तो संभल जा भाई।
क्यों इतलाफ़ पे तुला है अपने ही मुल्क की, ऐसी क्या जाहिल अक्ल पाई।
कब हुआ भला उस सोच का जंहा जहन में एक दूसरे के लिए पाली बुराई।
जाग जा अभी भी वक़्त है, इक जान हो जा फिर शायद ही नसीब हो इस पल की भरपाई।
दिखा दे अपनी एकता कर दे इजाज मुल्क को, मिसाल कर दे कायम इतिहाद की मेरे भाई।
आज तो लड़ भी लोंगे एक दूसरे से, कल कोई न बचेगा इनाद के लिए मेरे भाई।
समझ जा आज तो छोड़ दें तू हिंदू मुस्लिम की ये लड़ाई।
आज देर हो चुकी है छा चुकी है पूरे जहान में घने अंधकार की परछाई।
अभी भी वक़्त है मिलकर लड़ो इस बला के विरूद्ध लड़ाई।
भर दो रोशनी से अंधकार को, तभी तो इश्राक होगा उम्मीद का सारे जहान को दो सीख मेरे भाई।
संभल जा आज तो छोड़ दो हिंदू मुस्लिम की ये लड़ाई।
जिस माटी का तुम खाते हो उसी माटी को जहरीला करने की ऐसी जाहिल अक्ल तुमने कंहा से है पाई।
छोड़ दो ये नादानियां संभल जाओ, क्यों अपने ओर अपनों के लिए कब्र खोदते हो मेरे भाई।
मिलकर रहो मिलकर लड़ो इन अंधेरी राहो को रौशन करने की लड़ाई।
आफताब बनो अल्फ़ाज़ बनो, पूरे जहान का तुम अशफाक बनो फिर शायद ही नसीब हो इस पल की भरपाई।

_संघमित्रा