मुतंजिर
आज शमा से फैला है अंधेरा,बगर में मचा निभृर्त का शोर
वो कल जो आनन करते ठठ्ठा,वो सावन से निकार्य हुए मोर
नापिडा जो कल था,उसपर मौन बंदे विराजा हुआ है जंजीर
में वो ही हूं,बस उस काल का नहीं,पर वक्त का हूं मुंतजिर
शुक्र भी है,सवाल भी,की जो कल देखा वो क्यों आज नहीं
जहां खग का था दबदबा,वहा द्विज चुप हो और बाज सही
नेत्रहीन हम है या पूरी...
वो कल जो आनन करते ठठ्ठा,वो सावन से निकार्य हुए मोर
नापिडा जो कल था,उसपर मौन बंदे विराजा हुआ है जंजीर
में वो ही हूं,बस उस काल का नहीं,पर वक्त का हूं मुंतजिर
शुक्र भी है,सवाल भी,की जो कल देखा वो क्यों आज नहीं
जहां खग का था दबदबा,वहा द्विज चुप हो और बाज सही
नेत्रहीन हम है या पूरी...