चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ?
कैसे लिखूं मै कुमकुम बिंदिया, रोली कंगन की झनकार,
जब माता के आंगन में, मचा हुआ है हाहाकार।
कोई भोंकता पीठ मे खंजर, कोई वक्ष पर ताने तलवार,
कोई देश की बोली लगाता, संस्कृति पर करता प्रहार।
कोई बांटता जाति धर्म में, करवाता जन मे दंगे,
कोई देशभक्ति की आड़ में, बैरी से लड़वाता जंगे।
कोई सेना के सौर्य बल पर, प्रश्न चिन्ह उठाता है,
कोई अदालतों की चौखट पर, न्याय की बोली लगाता है।
कोई बैठ कर संसद में, जन गण की दंभ भरता है,
छलकपट से छद्म भेष में, जन मानस जख्मी करता है।
ऐसे निर्मम हालतों मे मैं, चुप कैसे रह सकता हूँ?
माता मेरी विलख रही, मै चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ?
ऐसे कुकृत्यों पर कहीं, धरती डोल गया होगा,
भूमंडल के बाहर कहीं, अंबर बोल गया होगा।
निष्ठुरता से क्रुद्ध हो कर,...
जब माता के आंगन में, मचा हुआ है हाहाकार।
कोई भोंकता पीठ मे खंजर, कोई वक्ष पर ताने तलवार,
कोई देश की बोली लगाता, संस्कृति पर करता प्रहार।
कोई बांटता जाति धर्म में, करवाता जन मे दंगे,
कोई देशभक्ति की आड़ में, बैरी से लड़वाता जंगे।
कोई सेना के सौर्य बल पर, प्रश्न चिन्ह उठाता है,
कोई अदालतों की चौखट पर, न्याय की बोली लगाता है।
कोई बैठ कर संसद में, जन गण की दंभ भरता है,
छलकपट से छद्म भेष में, जन मानस जख्मी करता है।
ऐसे निर्मम हालतों मे मैं, चुप कैसे रह सकता हूँ?
माता मेरी विलख रही, मै चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ?
ऐसे कुकृत्यों पर कहीं, धरती डोल गया होगा,
भूमंडल के बाहर कहीं, अंबर बोल गया होगा।
निष्ठुरता से क्रुद्ध हो कर,...