...

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गोया कि
एक अबोध बालक

रोज नए नए ख्वाबों से जिंदगी गुलज़ार है।
सपने है खुली आंखों में और रंजों गम बेशुमार है।

फिर भी न आंख थकती है न हम थकते हैं ।
रोज रोज तोहमत के लगे चाहे हज़ारों अम्बार हैं।
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