...

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हाँ वो एक परी थी
हां वो एक परी थी जो सपनो में आकर मिलती थी
हां वो थी एक गुलाब जो मेरे गुलशन में खिलती थी

पूछा करती थी कि कल्पनाओं में कहाँ तक जाते हो
देख सितारे वस्त्रों के क्या तुम कुछ लिख पाते हो

मैं सपने सारे बुनता था, कुछ लिख देता कुछ गाता था
वो भी जन्नत की राह में मेरा हाथ पकड़ के चलती थी

मेरे खास दिनों को और खास उसकी मिठाई बनाती थी
मेरे हिस्से का मीठा भी खुद बड़े चाव से खाती थी

मैं रूठ भी जाता था तो वो,
मुझे बड़े जतन से मनाती थी
मैं कितना खास हूँ उसके लिए,
हरदम मुझको बतलाती थी

मेरी किस्मत फिर रूठ गयी, और ना...