...

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जीवन के राज
दो राहों पर खड़ा कल को आवाज़ देता हूं,
आज-अभी से भविष्य को अल्फ़ाज़ देता हूं।

जिसे सपनों की तरह जमाना भुला देना चाहे,
उन सपनों को हकीक़त की परवाज़ देता हूं।

सही-गलत का पहचान कैसे हो, सभी अपने हैं
एक को मनाने में दूसरे को कर नाराज़ देता हूं।

बहुत नाम किया मैंने गरीब मजदूरों के बल पर,
थोड़ा उनका नाम ले, उन्हें भी ताज देता हूं।

हर बार मैं सही हूं, ऐसा कहां कभी हो सका,
मौन रह कर मैं इस बात पर एतराज़ देता हूं।

परायी क्यों बनी बेटियां, समझ नही सका,
खुशियां ही बाटें वो, बता तुम्हे ये राज़ देता हूं।
© Saddam_Husen