...

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यूँ तो कई दफ़ा.... क़रीब आये तुम मेरे
यूँ तो कई दफा क़रीब आये तुम मेरे
लेकिन कभी तो क़रीब आओ
मेरे मन से मन तक.....
जहां से तुम्हें ज्ञात हो सके
मेरी मुस्कुराहट के पीछे में वो नैराश्यपूर्ण भाव
जो अपने ही जद्दोजहद में छिपे मिलते है

तुम आओ "जान" मेरे इतने पास
जिधर से तुम्हें दिखा सकूं मैं
मेरी ना मंजूरी में भी "हाँ" कहने की वो
क्षुद्र मनोदशा भी.....

तुम आओ जान मेरे इतने नज़दीक़
जहां से तुम्हे मालूम हो
मेरा वो भय जो नाहक़ ही साहस
लिए बने फिरते है बड़बोले से.....
मुझे तुमसे कहनी है वो सभी बातें
जो अपने ही संशयः में अटके रहे, जाने कब से....
यूँ तो कई दफा करीब आये तुम मेरे.....!!!!

© प्राची मिश्रा "जिज्ञासा"

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