...

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एक दबी आवाज़ ( Justice for vaterinarian "Dr. Priyanka Reddy ")
अपने जिंदगी के अंतिम सांस तक
कतई क्षमा नहीं कर सकती मैं उसको,
जिसने मेरे जिस्म को खरोंचा है,
जिसने मेरी आत्मा को नोंचा है।

अपनी हवस की भूख मिटाने को,
अपनी झूठी मर्दानगी दिखाने को,
जिसनें हमारी इज्जत को ताड - ताड कर दिया ,
जिसने उस काली रात इंसानियत को शर्मसार कर दिया।

हम तो घर से निकले थे अपनी पहचान बनाने को,
पड़े हुए बेजुबान जो उनकी जान बचाने को,
देर हुई हमको यूं कहलो अस्पताल से आने को,
लगे दरिंदे मेरे पीछे फिर षड्यंत्र रचाने को।

मेरी स्कूटी करके पंचर , चले वो मदद कराने को ,
मै ना समझ भोली समझ आतुर थी मदद पाने को ,
कर रही ज़िन्दगी गुहार , इंसानियत आजमाने को,
बड़ रही उनके वो हाथ , मेरी इज्जत उड़ाने को।

आह निकली मेरे मुख से , की कोशिश खुद को बचाने को,
न आई दया हुई हैवानियत पार , मेरी अस्मत मिटाने को ,
बिलख रही चीख रही , किसी तरह खुद को छुड़ाने को ,
शर्मशार हो गई इंसानियत , धिक्कार है इस जमाने को।

जला दिया मेरे शरीर को , दरिंदो ने खुद को बचाने को ,
एक बेटी फिर हार गई , बस न्याय पाने को ,
न आया कोई आगे हैवानियत मिटाने को ,
आखिर आज हुआ दुशासन सफल , द्रूपत चीर ले जाने को,

तड़पती हैं कितनी अब बेटियां न्याय पाने को,
न जाने कितनी प्रियंका चड़ती बली जमाने को ,
मोमबत्ती से भी हटकर सोचो बेटियां बचाने को,
आरती यूं रो पड़ी बस ये बताने को।

— Arti Kumari Athghara (Moon) & Aakash Raghav ✍✍
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