...

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मैं स्त्री..........,💃♀️

चंचल तितली सी लहराती ठुमकती सी वो
उसके खुले आसमान का अंदाज तुम न लगाना
बँधी हुयी अदृश्य दहलीज़ से वो
हमेशा उसने अपनी सीमा को जाना

श्रंगार काजल कपड़े देख उसके उलझ मत जाना
उसकी सुंदरता का न तुम कोई अंदाजा लगाना
हर ओट में दर्द की टीसे छिपी हुयी हैं
सीखा उसने गरल दर्द को हँस कर पी जाना

कहते तो सभी हैं कि बदल रहा है जमाना
उन्नति को ओर बढ़ रहे उसके कदम ये न मानना
यथार्थ के धरातल कांटों भरे हैं
जिल्द नई है और किताब का वही मजमून पुराना

© ऋत्विजा