...

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यादों का झोखा...
यादों का झोखा रह-रह कर आता है
मेरी रूह को बेचैन कर मुझे तड़पाता है
कहां जाऊ इनसे दूर, खुद को कैसे बचाऊ
जब इन यादों से ही मेरी सांसे चलती है

गुज़रे लम्हें यादों मे सिमट गये
हम उन लम्हों मैं ही कहीं रह गये
चाहा बहुत निकल आऊं इनसे
पर मेरी हर कोशिश नाकाम हो गयी है

काश वो पल लौट आये
तो यादों का मंज़र यूँ ना सताये
मेरी बेबसी बन मुझे ना रुलाये
मैं आगे बढ़ना चाह रही पर ये यादें मेरे रास्ते मे आ रही हैं
क्यूंकि यादो का झोखा रह-रह कर आता है....

दिन बीत जाते है रात भी गुज़र जाती है
दिल मे बसी यादें तन्हाई से रूबरू करा जाती है
बहुत कुछ है इनमें कभी ख़ुशी कभी गम
बीते वक़्त की तस्वीरें है ये यादें
जो झोखा बन रह-रह कर आता है......

कैसे कोई भूल जाए अपने अतीत को
यादों का मेला हर रोज़ लगता है
बीत जाए लम्हा तो वापस नहीं आता
फिर भी ज़िन्दगी के हर मोड़ पर नज़र आता है, क्यूकि....
मेरे जेहन मे यादों का झोखा रह-रह कर आता है.....

यादों का सफर तय हर रोज़ करते हैं
कभी खुद से कभी यादों से लड़ते हैं
मेरे कहने से भी ये नहीं जाती है
हर घड़ी मुझे अपने पास बुलाती हैं
ना जाऊ ये सोचती हूँ फिर भी वहीं पहुँचती हूँ, क्यूंकि....

यादों का झोखा रह-रह कर आता है
मेरी रूह को बेचैन कर मुझे तड़पाता है.....

_कल्पना@कल्पू _