एक कविता
#युगसंवाद
तुम थे पाषाण मै नव युग हूँ,
एक बात बताने आया हूँ,
तब थे रिस्ते अब है अपने,
तुम्हे ये मै ज्ञान कराता हूँ,
पहले थी चिड़ियों की आजादी,
अब पिंजरो मे बंधे है सब,
पहले रिस्ते होते थे दिल से,
अब तो स्वार्थ रहा है बस,
निश्छल थी तब माँ की ममता,
अब पैसे होता है महत्व,
उस युग...
तुम थे पाषाण मै नव युग हूँ,
एक बात बताने आया हूँ,
तब थे रिस्ते अब है अपने,
तुम्हे ये मै ज्ञान कराता हूँ,
पहले थी चिड़ियों की आजादी,
अब पिंजरो मे बंधे है सब,
पहले रिस्ते होते थे दिल से,
अब तो स्वार्थ रहा है बस,
निश्छल थी तब माँ की ममता,
अब पैसे होता है महत्व,
उस युग...