...

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मंजिल या सफर?
एक मंजिल की ओर चली जा रही हूं,
रिश्ते जोड़ते तोड़ते चली जा रही हूं,
सभी इच्छाओं को मारकर,
झंडे बुलंद करते चली जा रही हूं।

या

एक सफर पर चली जा रही हूं,
दिल मिलते मिलाते चली जा रही हूं,
सभी मंजिलों को भुलाकर,
पछतावे की पात्र बनती चली जा रही हूं।

🤔
हम ज़िंदगी इन दो तरीकों से जी सकते हैं। अगर हम मंज़िल पर केन्द्रित रहें तो सफ़र की खूबसूरती को देते हैं। और जब सफ़र का आनंद उठाते हैं तो मंज़िल से कोसों दूर रह जाते हैं।

आखिर ज़िंदगी जीने का सही तरीका है कौन सा?🤔🤔

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