...

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अनसुलझे रिश्ते
ऐसा नहीं है कि
हर पल उसके ही बारे सोचता हूँ।
पर मिलता हूँ जब भी उसे
असहज सा होने लगता हूँ।
बेलगाम घोड़ों सी धड़कन ये दौड़ा करती है..
रोकने में जिसे बड़ी मशक्कत लगती है।
ऐसा नहीं कि
वो खूबसूरत बहुत है,,
सलोनी कई देखी है इन आंखों ने
लेकिन देखना उसे ही भाता है मन को।
ऐसा नहीं कि
इरादतन उसे तंग करता हूँ...
मैं दिखाना कुछ चाहता हूं
उसे दिख कुछ जाता है।
मैं कहना कुछ चाहता हूं..
वो समझ कुछ जाते हैं।
नहीं, ऐसा भी नहीं कि
जो दिखाना चाहता हूं, समझाना चाहता हूं...
वो समझ नहीं पाते
उन्होने ठान रखा है कि
समझना क्या है और देखना क्या है।
© Joginder Thakur