...

5 views

एक गलतफहमी वाली इश्क़
क्यों नहीं टोकते हो मुझे?
क्यों नहीं आंखों में अपने बसाते हो?
रूठे हुए हो मुझसे आजकल?
यहां बस रूठने की अदा तुम दिखाते हो?
मुझे ना कोई ख़्वाब तेरा ना मुझे तेरी याद।
झूठ कहता हूं अब फिर भी यादों में घर बनाते हो।।
दिल से कर लिया था तौबा हमनें इस मायूसी में।
मायूसी को मेरी अपनी मुस्कान से क्यों छीन ले जाते हो?
बहरहाल तुमसे क्यों उम्मीद लगाएं हम दिल की गलियों में।
दिल तो हमारा था नहीं और तुम धड़कनों में क्यों बस जाते हो?
सोचते है हम की सोच कर भी तुझे ना कभी याद करें।
हमारे सोच के जज्बातों को क्यों ऐसे तुम बदल जाते हो?
कोई रंज तो है मुझमें भी, कोई रंज होगा तुझे भी।
रंज है जब दिलों में इतनी तो क्यों आशिक़ी मेरी बनते जाते हो?
© ज़िंदादिल संदीप