...

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गर्मी
चंद दिन पहले
गर्मी आई थी दुबकी - सी ,
होने लगी थी उमस कंबल तले ।
कुछ ने ओढ़ना छोड़ा ;
कुछ ने तापना त्यागा ;
और , यूं गर्मी की की अगवानी ,
साथ ठंडक का किया अलविदा !
गर्मी थी तब तक ,
अतिथि आ धमकी !
बस , उसके स्वागत की बेचैनी - सी,
सबों के सिर पर पसीना था टपका
और सिलवाने लगे थे कुर्ता व कुर्ती।
कुछ दिन बाद , जैसे करनी हो विदाई - परिधान सूती।
पर , वाह रेे , गर्मी !
ठीक पहले की तरह
बैठी थी ढीठ - सी ,
किन्तु, जाने का न लेती थी नाम।
चलते राही को भी करती परेशान;
उद्दंड बच्चों - सी
काटती थी देह में चींटी की तरह,
क्यों न...