...

11 views

गर्मी
चंद दिन पहले
गर्मी आई थी दुबकी - सी ,
होने लगी थी उमस कंबल तले ।
कुछ ने ओढ़ना छोड़ा ;
कुछ ने तापना त्यागा ;
और , यूं गर्मी की की अगवानी ,
साथ ठंडक का किया अलविदा !
गर्मी थी तब तक ,
अतिथि आ धमकी !
बस , उसके स्वागत की बेचैनी - सी,
सबों के सिर पर पसीना था टपका
और सिलवाने लगे थे कुर्ता व कुर्ती।
कुछ दिन बाद , जैसे करनी हो विदाई - परिधान सूती।
पर , वाह रेे , गर्मी !
ठीक पहले की तरह
बैठी थी ढीठ - सी ,
किन्तु, जाने का न लेती थी नाम।
चलते राही को भी करती परेशान;
उद्दंड बच्चों - सी
काटती थी देह में चींटी की तरह,
क्यों न वह बैठा हो पेड़ों तले !
बड़ी थी घाघ , ना सोने देती थी ,
दिन हो या रात
पर वही कहानी पुरानी:
कहती नानी कहानी ;
लेकिन , उष्मज ,अण्डज सबों की वैसी ही परेशानी
कि गर्मी जाएगी कब तक
अपने ससुराल ?
बीच-बीच में , बीमारी भाभी
आती थी पूछने हाल ,
लेकिन जल, थल, नभ कहते व्याकुलमना-
हाल ही बेहाल है !
अंततः, वर्षा आई चंचल थपेड़ों से,
बूंदों से , पीठया बहन जैसी
कूदने लगी धमधमा , गर्मी की पीठ पर;
स्वापमान देखकर गर्मी सहमी, लजाई - सी
जाने लगी पीड़े से ;
पूछा वर्षा ने धीरे  से ;
बोला दिलजले - वर्षा बहन ,
अब हाल ठीक है !
न सोया था , सोने दो चद्दर तले,
ये उमस भरी रातें !
तेरी भाभी से न हुई बातें!
तेरा मायका है ' शाश्वत '
तू पेड़ों , पहाड़ों सबों से मिल ;
मैं पूछता हूं उससे उसका हाल ए दिल।

№ : अर्थ गांभीर्य की दृष्टि से चिह्न विचार को आकुंचित किया गया है।

© 01/07/2005


© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत'