...

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मैं जानता हूं...

मैं सोचता हूं क्या नाम दूँ तुम्हें?

तुम मेरा ख्वाब हो, महज़बीन, हसीन ख्वाब, तुम मेरे दिन का आफताब, रातों की माहताब।

तुम जब जब आसमां में मुकम्मल चांद को देखती हो, मैं जानता हूं उस वक्त, उस लम्हा तुम क्या सोचती हो?

तुम जब भी आराम से कहीं थक कर बैठ जाती हो, मैं जानता हूं तुम सिर्फ मेरे ही बारे में सोचती हो।

और तुम जब भी नज़र झुका कर कलम उठाती हो, मैं जानता हूं तुम सबसे छुपकर मेरा नाम लिखती हो।

तुम जब अपने धानी दुपट्टे को उंगलियों से घुमाती हो, जानता हूं मेरी ही किसी बात को याद कर मुस्कुराती हो।

तुम जब भी आंखें बंद करके दीवार से टिक जाती हो, मैं जानता हूं अकेले में तुम मुझको ही याद करती हो।

तुम कौन हो मेरे लिए? क्या तुम खुद को जानती हो?

तुम वो दिलकश ख्वाब हो जो मेरे तसव्वुर में रहती हो।

by Santoshi