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डोली
आओ तुम्हें सुनायें एक रुदन भारी कविता।
अपनी बेटी की शादी करने को एक पिता।
वर्षों से पाला था उस जिगर के टुकड़े को।
उमर हो गयी उसकी परिणय बंधन में बंधने को।
तिनका-तिनका रुपया जोड़ा, जीवन भर की कमाई थी।
अपनी बेटी की शादी के लिए सब दांव पर लगाई थी।
कोई कसर ना छोड़ी बाकी, बेटी की शादी है।
वो लड़के वाले कुछ भी कहें, हम सुनने के आदी हैं।
एक दिन उसकी बेटी की शादी की मंगल बेला आयी।
सारी जमा पूंजी यहाँ तक इज्जत भी तुलवाई।
बेटी बोली पापा ना रोना मैं तो तेरी लाडली रही।
विदा वक्त था बाप खड़ा था मानों जैसे जान गई।
कोई कसर रहे ना बाकी उस बाप का अरमान था।
गिरवी रख दिया था उसने अपना भी मकां था।
© Mr. Busy
अपनी बेटी की शादी करने को एक पिता।
वर्षों से पाला था उस जिगर के टुकड़े को।
उमर हो गयी उसकी परिणय बंधन में बंधने को।
तिनका-तिनका रुपया जोड़ा, जीवन भर की कमाई थी।
अपनी बेटी की शादी के लिए सब दांव पर लगाई थी।
कोई कसर ना छोड़ी बाकी, बेटी की शादी है।
वो लड़के वाले कुछ भी कहें, हम सुनने के आदी हैं।
एक दिन उसकी बेटी की शादी की मंगल बेला आयी।
सारी जमा पूंजी यहाँ तक इज्जत भी तुलवाई।
बेटी बोली पापा ना रोना मैं तो तेरी लाडली रही।
विदा वक्त था बाप खड़ा था मानों जैसे जान गई।
कोई कसर रहे ना बाकी उस बाप का अरमान था।
गिरवी रख दिया था उसने अपना भी मकां था।
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