...

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अब खुद के लिए सोच..
तुम भूल कर बैठी
उम्र भर के लिए
शूल ले बैठी..
मुझसे मुहब्बत करके
दर्द को कुबूल कर बैठी..
ह्रदय मेरा काटों से भरा
फूल की उम्मीद कर बैठी!! वध वाले
बहारे छोड चली मुझे
बरसों दहकते हुए शोलों पे
तुम भूल से उन्हे
गुलाब समझ बैठी.. !!
मकडी के जाल की तरह
न छोर है न किनारा,
ऐसे मै काबिल ही कहाँ हू
जो दे...