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सन्देश
भ्रान्ति को इस भांति फैला मत,
शत्रु की जैसे तू मुझे बुला मत।
एक तो मन से अत्यंत ही व्युष्ट हूँ मैं,
अब बिती वेला का ताप जला मत।
मैं ने समझने में न कोई भूल की है,
मैत्री क्या है यह तू मुझे सिखा मत।
वा तो यूँ ललकारना बंद कर,
वा ये श्वेत पताका लहरा मत।
© AeyJe
शत्रु की जैसे तू मुझे बुला मत।
एक तो मन से अत्यंत ही व्युष्ट हूँ मैं,
अब बिती वेला का ताप जला मत।
मैं ने समझने में न कोई भूल की है,
मैत्री क्या है यह तू मुझे सिखा मत।
वा तो यूँ ललकारना बंद कर,
वा ये श्वेत पताका लहरा मत।
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