...

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तोड़ दो ये बेड़ियाँ
तोड़ दो ये बेड़ियाँ, अब और नहीं सहेंगे,
हम घुटन में जीना, अब और नहीं कहेंगे।

दर्द की इन जंजीरों को, काट देंगे आज,
आज़ादी का नया सवेरा, लाएंगे आज।

खामोश रहकर, सहते रहे हैं सदियों से,
अब आवाज़ उठाएंगे, चीखेंगे सदियों से।

तोड़ दो ये बेड़ियाँ, अब बस बहुत हुआ,
हमारी आत्मा की चीख, अब आसमान छुआ।

तोड़ दो ये बेड़ियाँ, अब और नहीं सहेंगे,
दर्द के आंसू, अब और नहीं बहेंगे।

कितने ज़ख्म दिए तुमने, कितने सितम सह गए,
अब बस बहुत हुआ, अब हम नहीं रहेंगे।

ये दिल का पिंजरा, अब खोल दो,
अपनी मर्ज़ी से जीने दो, अब हमें छोड़ दो।

तोड़ दो ये बेड़ियाँ, अब उड़ना है हमें,
आज़ाद परिंदा बन, खुल के जीना है हमें।