...

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मैं तुम और ये बारिश
ख्वाबों में सजाए थे
सपनों में बिताए थे
वो रातें भी क्या रातें थीं
जब बारिश में हम तुम नहाएं थे
वो मिट्टी की शोंधी खुशबू
वो कलियों का यूं झूमना
गाती हुई कोयलिया थी
चांदनी की छटाओं में
मयूरी नाचती थी संग
सावन की घटाओं में
वो बिजली और वो बादल का
कड़कना और गरज जाना
मेरा डरना और डर कर तुम्हारी
बांहों में छुप जाना
तुम्हारी वो शरारतें
और मेरा वो शर्माना
तुम्हारा झूम– झूम कर
मुझ से फिर लिपट जाना
सब याद है मुझको
तेरे संग सावन में भीगना
वो रातें भी क्या रातें थीं
जब मैंने ये सपने सजाए थे.
सुनहरे ख्वाब ही तो थे,
खुली आंखों में टूट जाने थे.
ख्वाबों में सजाए थे
सपनों में बिताए थे
वो रातें भी क्या रातें थीं
जब बारिश में हम तुम नहाएं थे.
✍️✍️✍️©रंजना श्रीवास्तव
© Ranjana Shrivastava
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