मैं तुम और ये बारिश
ख्वाबों में सजाए थे
सपनों में बिताए थे
वो रातें भी क्या रातें थीं
जब बारिश में हम तुम नहाएं थे
वो मिट्टी की शोंधी खुशबू
वो कलियों का यूं झूमना
गाती हुई कोयलिया थी
चांदनी की छटाओं में
मयूरी नाचती थी संग
सावन की घटाओं में
वो बिजली और वो बादल का
कड़कना और गरज जाना
मेरा डरना और डर कर तुम्हारी ...
सपनों में बिताए थे
वो रातें भी क्या रातें थीं
जब बारिश में हम तुम नहाएं थे
वो मिट्टी की शोंधी खुशबू
वो कलियों का यूं झूमना
गाती हुई कोयलिया थी
चांदनी की छटाओं में
मयूरी नाचती थी संग
सावन की घटाओं में
वो बिजली और वो बादल का
कड़कना और गरज जाना
मेरा डरना और डर कर तुम्हारी ...