...

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मै और मेरा दर्पण
हम दोनो एक ही है
लेकिन फिर भी अलग
अलग .....
मुस्कुराता है चेहरा मेरा
रोता दर्पण......
उत्साह , व्याकुलता, चल्चलता
एक तरफ़......
दूसरी तरफ उदासी , तनहाई,
और मेरा अकेलापन
हम दोनो जब एक दूसरे
से मिलते हैं, जैसे सूरज
चांद ढलते है........
वो मुझ पर हंसता है
मै उस पर हंसती हूं......
कभी कभी मेरा दर्पण मुझ से
कहता है ये दिखावा क्यों?
तुम जो हो ही नही वो बनी
क्यों? मैंने मुस्कुरा कर जवाब
दिया ये दुनिया हैं यहां ऐसा
ही होता है, हर मुस्कुराता चेहरा
अंदर से रोता है,
छुपानी पड़ती है अपनी कमज़ोरी
जमाने से
क्युकी ये जमाना कमज़ोर को
और कमज़ोर करता है.......
इसलिए अच्छा हो या बुरा हर
इंसान दो चेहरे रखता है
एक वो जो सारी दुनिया में दिखता
है , और एक वो जो सिर्फ उसको, उसके
दर्पण में दिखता है......