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एहसास
ऐ हसीन जिन्दगी मुझपे एक एहसान कर।
हर किसी के रम्जगम को मुझको तुम अदा कर।
मैं अकेला जी सकूं ना, मैं अकेला मर सकूं।
मेरे इस ज़मीर में एक नया एहसास भर।
हर किसी को सुख मिले ,हर कोई समृद्ध हो।
हम भी मानव तुम भी मानव एक सा व्यवहार कर।
रास्ते कितने कठिन हो मंजिलें कितनी हो दूर।
दूरदर्शी बन तूं मानव चल यहां दुःख बांट कर।
ऐ हसीन जिन्दगी मुझपे एक एहसान कर।
स्व रचित (अभिमन्यु )
© All Rights Reserved
हर किसी के रम्जगम को मुझको तुम अदा कर।
मैं अकेला जी सकूं ना, मैं अकेला मर सकूं।
मेरे इस ज़मीर में एक नया एहसास भर।
हर किसी को सुख मिले ,हर कोई समृद्ध हो।
हम भी मानव तुम भी मानव एक सा व्यवहार कर।
रास्ते कितने कठिन हो मंजिलें कितनी हो दूर।
दूरदर्शी बन तूं मानव चल यहां दुःख बांट कर।
ऐ हसीन जिन्दगी मुझपे एक एहसान कर।
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