...

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बिखरे स्वप्न हम समेटे हैं...

साँसे सहसा रुक रहीं,
स्वप्न सभी अधूरे हैं।
साहस संकटों से दबा,
आस सरोवर कहाँ पूरे हैं।।

सूरज सहसा ढल गया,
साँझ पाँव पसारे है।
दुखों का एक सागर उठा,
अश्रु बने सहारे हैं।।

सहारा मिला भी एक हद...