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तकदीर की दुआई ॥
वो तकदीर की दुआई देकर सितम सहते गये ।
कुछ लोग बेगैरत से सितम पर सितम करते गये ॥
चहेरे पर नही लिखा था दर्द उसका।
हजारो जख्म लिये दिल में 'नासुर बनकर दर्द उभरते गये . ।
गैरो की बात ना कीजिए " शकुन" अपने
ही अपनो को छलते गये ॥
हर शक्स यहां बनावटी चहेरे लिये घुमता है। नाकाब में छुपे बे रुपिये खुले आम शक्ल बदलते गये ॥
कोई हमसफर नही इस जमाने में किसी युं ही चोट खाकर हम हर पल और भी निखरते गये ॥
मतलब की दुनियां से नाता क्या बनाना ।
पैसों को खुदा मानने वाले खुद ही पैसो पर मरते गये ॥
गरज इतनी सी है मरने वाले को मिटटी दे दे कोई ' वरना चार कंधे पर जनाजे यूं ही सजते गये ॥
जीते जी तो निभा ना सके रिश्ता दिलो का "जो प्यार से हमें जहर भी पिलाते गये ॥
© shakuntala sharma