...

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दोस्ती।
वक्त से आज ,
कुछ बेरुखी सी महसूस हुई।
ये जिंदगी,
अपनी जिंदगानी से मायूस हुई।
एक शोर सा छाया है,
इस सन्नाटे के संगीत में।
आज फिर एक बार,
वक्त चला है,
वक्त के अतीत में।
शायद वक्त को कुछ ऐसा मंजूर था,
छूट गया वो नाता,
ज़माने भर में मशहूर था।
काश कोई जाकर,
उस वक्त को फिर से मोड़ ले।
और मुझे फिर से, मुझे
उन राहों में छोड़ दे।
जहा मदमस्त सी दोस्ती थी,
यारी में मशरूफ ,
मैं और मेरा यार था।
खड़ा हु आज भी वही,
की दिल ये बेकरार है।
आज भी उन गलियों को,
अपनी दोस्ती का इंतजार है।