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यूँ घूमा न करो बेनक़ाब
यूँ घूमा न करो बेनक़ाब, ज़रा घूँघट में रहा करो,
छोड़ो न तुम शर्म-ओ-हया, ज़रा हद में रहा करो।

अप्सरा सी हो तुम, कहीं नज़र न लग जाए तुमको,
इसलिए कहता हूँ, चारदीवारी की सरहद में रहा करो।

धन-दौलत की चाह है तुम्हें, महलों के ख़्वाब देखती हो,
त्याग दो तुम अपनी ये हसरतें, किसी के दिल में रहा करो।

मत भटका करो किसी साथी की तलाश में इधर-उधर,
हमसे अच्छा कौन है, चाहो तो हमारी संगत में रहा करो।

© दुर्गाकुमार मिश्रा