...

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तुम्हारी यादें....
कहाँ जाऊँ कि दूर - दूर तक अंधेरा है,
तेरी यादों ने मुझको हर तरफ़ से घेरा है,
मैं तो करता हूँ तुझसे इश्क़ मगर,
तूने नज़रों को आज मुझसे जैसे फेरा है ||

तूने दिल से निकाला है मुझको,
मेरे दिल में अभी तलक तेरा बसेरा है,
मेरे साथी तू डर गया है इस ज़माने से,
पर मुझे देख इस शहर ने कैसे घेरा है ||

सबकी उम्मीदें टिकी हैं मुझ पर,
मेरी उम्मीदों पर पानी सभी ने फेरा है,
लोग कर देते हैं अपनी तरफ़ से मेरी हाँ,
मुझसे भी पूछे कोई फैसला क्या मेरा है ||

© चन्दन नाविक 'विनम्र'