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शीर्षक- उर की वेदनाएँ


शीर्षक: उर की वेदनाएँ

उर की वेदनाओं से हम,कभी बाहर न आ पाए,
कोशिश की बहुत निकलने की इनके पार, पर कभी पार न पा पाए।
जब भी देखा खुदको,तो पाया छल रही है दुनिया हमें,
सब कुछ समझ तो गए पर कभी कह न पाए।

कैसे बतलाएँ उन पीड़ाओं को, जिनसे निकलना मुश्किल रहा,
जब दुःखों ने दस्तक दी अचानक तो उबरना मुश्किल रहा,
छिपा तो लिया हर दुःख को, मुस्कुराहट में बदलकर,
बो मंजर आँखे बंद करके...