...

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कविताएं
जब कुछ लिखने को ना हो
तब पढ़ती हूं
लोगों की लिखी कविताएं
कुछ छोटी कुछ बड़ी
सुनी अनसुनी
बस जो लिख दी गई हो
कभी किसी वजह से
तो कभी यूं ही
बेवजह..

ढूंढने की कोशिश करती हूं
शब्दों के बीच की
खाली जगह में
छूट गए शब्द
इतने भारी
इतने विशाल..
जो इतनी संकरी जगह में
समा ही नहीं पाए

देखने की कोशिश करती हूं
कलम के नीचे
बलिदान हुई संवेदनाएं
एक पूरी कविता के बनने में
जो समझ ली गई बहुत छोटी
गुमनाम अनाम..
प्रश्नचिन्ह है
जिनके वजूद पर भी

सुनने की कोशिश करती हूं
कुछ मौन विचारों के
फड़फड़ाने की
आवाज़ें..
आधी आबादी की आवाज़ सी
आज़ाद होने को
कराहती, दबी हुई
आती किसी कोने से

और हर बार,
महसूस करने की कोशिश करती हूं
हर उस मन की गूंज!
जो कागज़ तक नहीं पहुंच पाई
या फिर,
पहुंचने नहीं दी गई..


© आद्या