...

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" यादों के दीए "
मेरी विरह वेदना पर
पतझड़ भी गुमसुम सा बैठा है
उम्मीदों के आश लगाए
शीतल बूंदें अब जीवन को अंगार लगती हैं
पेड़ों की घनी छाया तप्त लगती हैं
ऐसी है मेरी विरह वेदना की स्थिति
यादों के दीए बुझे बुझे से हैं
जैसे सारस पक्षी अपनी प्रेमिका के वियोग में
खोया खोया सा रहता है
अपनी सुधबुध खो बैठा है
न उसे दिन का होश है न ही रात का
वैसी मेरी मनोदशा व्याकुल सा रहता है
मुझे वो चांदनी रातें याद आया करती हैं
जब तुम ठंडी झील के किनारे
हर रोज आती थी
फ़िर वो रात थम सी जाती थी
मेरे मन में यादों के दीए बुझने लगें हैं
तेरी मुस्कान सी यादों को ताज़ा करता हूं
रोज़ सवेरे तेरा आश लगाए बैठा रहता हूं
ऐसे हाल में मैं न तो जीता हूं और न ही मरता हूं
बस तेरी उम्मीदों के चिराग़ जलाए बैठा रहता हूं
वक्त के साथ अब मैं भी टूटने लगा हूं
ऐ मेरे चाहने वाले ग़म आओ मुझे बहलाओ
तन्हाइयों मेरे पास आओ मेरा हौसला अफजाई करो
खुशियां रूठी हुई हैं चांदनी ने
अब धुंधली चादर ओढ़ ली है
रातें मुझे कमज़ोर कर रही हैं
मेरी आंखों में शबनम की बूंदें रहतीं हैं
आंखें मेरी पथरा गई हैं
उम्मीदों के तार टूट गए हैं
ओ मेरी प्रियसी तुम कहां हो
तेरे लौट आने की ख़ुशी में
मैंने वन के बेलों को आंसुओं से सीचा है
जिसमें तेरी वफ़ा की रेख़्ता है।

'Gautam Hritu'






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