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प्रेम के बोल
ये आंखें हर पल उनको खोजती हैं। जो लहरों सा बहे इस दिल में उसका अक्सर जिक्र कर रोया ह करती है। ढूंढती हैं उन्हें जिनके सपने ख्वाबों में सजोया करती है। आलम तो देखो इस कमभक्त वक्त का जब इन निगाहों को बंद करते हैं ना तो इस अंधियारे में आपकी ही सूरत दिखती हैं, कभी तो आपको रब जितना चाहा था, हमारी हर दुयाओ में हमने आपका ज़िक्र मांगा था। मानता हूं भूल हुई हमसे जो आपसे इतना दिल लगाया भूल गए थे, ज़माना सिर्फ उन्हें पूछता हैं जिसका दिल खुदगर्ज पाया। अब यह आखरी आलम भी कह देते हैं, कि मोहब्बत करनी है तो अपने आप से करो,आपने माता पिता से करो क्योंकि समय जरूर बदल जाएं लेकिन वो ना बदलेंगे कभी, चाहते रहेंगे तुम्हे अंत तक चाहें उम्र निकल जाए तुम्हारी।
© @NAVU07