...

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ख़ामोशी
जाने कैसे गुमराह हो गई वो हलचल
जो कभी हमारे तुम्हारे दरमियान थी

कि दिन भर की कुलबुलाहट समेटे
रात की ख़ामोशी में मोहब्बत जवां थी

प्रत्येक प्रहर का तिब्र गति से निकल जाना
तेरा यूँ बेसब्री से इंतज़ार करना क्या बात थी

जाने कैसे गुमराह हो गई वो हलचल
जो कभी हमारे तुम्हारे दरमियान थी
© स्वरचित Radha Singh