...

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मेरे ऊपर
ज़ुल्म ज़मानेभर का सरेआम मेरे ऊपर
मेरे ज़ख़्मों का सारा इल्ज़ाम मेरे ऊपर

कहतें जाओ जियो जिंदगी अपने मन की
और तान देतें तीर तमाम मेरे ऊपर

अजीब सा जुनूँ है मेरे दुश्मनों का भी
बर्बाद करते हैं सुबहों शाम मेरे ऊपर

आखिर मैं तुमसे अलग कैसे हो सकता हूँ
हाड़ मास का ही है ताम-झाम मेरे ऊपर

सजना संवरना कहीं और दिखाओ साकी
मत छलकाओ आपना जाम मेरे ऊपर

ये इश्क़ मोहब्बत की बातें सब ठीक हैं
पर जँचता नहीं है आशिक नाम मेरे ऊपर

एक मुझको सही राह बताने के लिए
कुर्बान हुए हैं कितने 'राम' मेरे ऊपर
© प्रियांशु सिंह