...

16 views

एक कहानी यह भी!
इसको पढ़ रहे सभी लोगों को मेरा प्रणाम ! मित्रों क्या आप सब दिखावे को महत्व देते हैं ? या कभी किसी प्रसंशक की बातों को छोड़कर अपने आप को जानने की कोशिश की है ? शायद नहीं क्योंकि हम उस दिखावे को तथा प्रसंशको की बातों को सच मान लेते हैं और इसके चलते हम दिखावे की मूर्ति बन जाते हैं । यदि इस दौरान हमारी कोई बुराई करे तो वह व्यक्ति हमारे लिए बहुत  बुरा हो जाता है , क्यों ? क्योंकि वह हमे सत्य का ज्ञान करवा रहा  हैं । बस इसी वास्तविकता से मैं आपका परिचय करवाऊंगी इस काव्य -कहानी के द्वारा .


एक समय की बात है ,एक राजा था अभिमानी ।  
प्रसंशा करने वाले को , मानता था सम्मानिय ।
निकालता जो वह गली -नगर से ,सब करते थे यश गान। 
अपने इस झूठे घमंड में, भ्रंमित हो गया नरेंद्र महान । 
सुनिए आगे क्या हुआ इस  चापलूसी के दौरान ।

एक दिन भरे दरबार में , मंत्री -प्रसंशक कर रहे थे बढ़ाई ।
क्या पता था उनको की महंगी पड़ जाएगी , उनको उनकी ही चतुराई ।
महाराज के सर पर मुकुट को कमल सा कहकर स्वांग रचाया ,
कमल के खिलने पर महाराज के कीचड होने को तिरस्कार बतलाया । 
महाराज अपनी निंदा पर क्ररोधित हुए काफी , आखिर प्रसंंशक को मागंनी ही पड़ी माफ़ी ।

जब इतने सूक्ष्म सच से था वो इतना विचलित ,
तब क्या होगा जब कोई इसको पूर्ण सच से दर्पण करायेगा ।
क्या लगता है मित्रों आपको ऐसा अवसर आएगा ।

वसंत पंचमी  के अवसर पर हर्षोल्लासित शाम थी ,
निकली जब  राजा की सवारी चारों ओर जयकार थी । ...