...

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दिसंबर की गुनगुनी धूप...
दिसंबर की गुनगुनी सी धूप
और तुम्हारे ख्याल...
नीम दराज आँखों में सब कुछ
वैसा ही बिखरा हुआ सा..
जैसा छोड़ गए थे तुम...!

बहुत कुछ समेटना चाहती हूँ
जहन के अंदर मगर
कुछ चीजें बिखरी हुई भी
सुकून देती हैं
जैसे तुम्हारी यादें...!

तुमने ही तो कहा था
" मैं लौट कर नहीं आऊंगा"...

हाँ.. नहीं करती अब तुम्हारा इंतज़ार
मगर ये जो बेबसी का अब्र है
वो मेरे हलक में अटक जाता है
बार-बार... हर बार...

और मैं नहीं रोक पाती
खुद की आँखों को
बरसने से...

मन की बंजर जमीं पर
तुम उग आते हो अपने आप
जंगली बूटे की तरह...
जिसे नहीं जरूरत
किसी भी तवज्जो की...!
" Raag "


© Dreamasingh
#raagquotes
#PoeticEra