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वो शख्स ,,,
नूर उस मह जबीं का आज कुछ बेरंग लगता है,
कुछ रोज से एक शख्स गुल-ए-नौरंग लगाता है,
कौन है वो शख्स जो बज्म की बीनाई ले बैठा,
दिल में टीस है वो बुझा बुझा सा तंग लगता है,
और चाहकर भी न मिटा, हाथों से उसके वो रंग,
उसके हाथ पे सुरख वो रंग हिना खुदरंग लगता है,
रकीब आए बहुत बज्म में पर उसने आह तक न ली,
क़ौल पे मुस्तक़िल सा, शख्स वो पाबंद लगाता है,
और थी बसर जिसकी शायरों की रामिश-गाह में,
इख्त्यार कर वो घटा काली बज़्म पे सारंग लगता है,
फ़िरदौस-ज़मीं कर चला था जो शहर-ए-दिल को,
अब क्यूं बेरुखी में शख्स वो सालार-ए-जंग लगता है,
अब छिड़ गई अदावत ए जंग तो क्यूं खार खाते हो,
थी अपनों की बगावत अब गैर के वो संग लगाता है,
और अब खींचोगे जितना पास तुम वो दूर जाएगा,
खुद को छुड़ा धागे से जो उड़ जाए वो पतंग लगता है,
© #mr_unique😔😔😔👎
कुछ रोज से एक शख्स गुल-ए-नौरंग लगाता है,
कौन है वो शख्स जो बज्म की बीनाई ले बैठा,
दिल में टीस है वो बुझा बुझा सा तंग लगता है,
और चाहकर भी न मिटा, हाथों से उसके वो रंग,
उसके हाथ पे सुरख वो रंग हिना खुदरंग लगता है,
रकीब आए बहुत बज्म में पर उसने आह तक न ली,
क़ौल पे मुस्तक़िल सा, शख्स वो पाबंद लगाता है,
और थी बसर जिसकी शायरों की रामिश-गाह में,
इख्त्यार कर वो घटा काली बज़्म पे सारंग लगता है,
फ़िरदौस-ज़मीं कर चला था जो शहर-ए-दिल को,
अब क्यूं बेरुखी में शख्स वो सालार-ए-जंग लगता है,
अब छिड़ गई अदावत ए जंग तो क्यूं खार खाते हो,
थी अपनों की बगावत अब गैर के वो संग लगाता है,
और अब खींचोगे जितना पास तुम वो दूर जाएगा,
खुद को छुड़ा धागे से जो उड़ जाए वो पतंग लगता है,
© #mr_unique😔😔😔👎
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