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ग़ज़ल
अगर दिल में थोड़ी सी भी जान होगी
ग़मे - ज़िंदगी फिर से मुस्कान होगी
सुनाना न उसको मेरा दर्द कोई
सुनेगी तो कितना परेशान होगी
उठाओ न पत्थर मेरे सर पे लोगो
मेरे सर से पहले वो बेजान होगी
जिसे देखकर बुलबुलें शादमाँ हैं
वही शाख़ पतझर का सामान होगी
अभी दर्द कुछ और मुझको मिलेंगे
अभी ज़िंदगी और आसान होगी
कहाँ जाऊँगा लौटकर सोचता हूँ
अगर राहे-जानाँ भी सुनसान होगी
बदल दी मेरी शक्ल कितनी ग़मों ने
वो देखेगी मुझको तो हैरान होगी
© All Rights Reserved
ग़मे - ज़िंदगी फिर से मुस्कान होगी
सुनाना न उसको मेरा दर्द कोई
सुनेगी तो कितना परेशान होगी
उठाओ न पत्थर मेरे सर पे लोगो
मेरे सर से पहले वो बेजान होगी
जिसे देखकर बुलबुलें शादमाँ हैं
वही शाख़ पतझर का सामान होगी
अभी दर्द कुछ और मुझको मिलेंगे
अभी ज़िंदगी और आसान होगी
कहाँ जाऊँगा लौटकर सोचता हूँ
अगर राहे-जानाँ भी सुनसान होगी
बदल दी मेरी शक्ल कितनी ग़मों ने
वो देखेगी मुझको तो हैरान होगी
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