...

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शायद कुछ अच्छा लगता था
जब भी होता था साथ तेरे, जवां दिल भी बच्चा लगता था
बता नही सकता क्या था वो,पर शायद कुछ अच्छा लगता था।
बातें बचपन की गलती की, कुछ अलग ही खुशिया देती थी
दिल के हर एक दर्द को जैसे, पल भर में हर लेती थी
इस झूठी जालिम दुनिया में ,बस तू ही सच्चा लगता था
बता नही सकता क्या था वो, पर शायद कुछ अच्छा लगता था।
वो हाथ पकड़ संग में चलना, और अक्सर कांधे पर ढलना
वो छोटी सी मुस्कान के लिए, बंदर जैसे नखरे करना
वो भीड़ में भी खुल के हसना ,जाने क्यू अपने जैसा लगता था
बता नहीं सकता क्या था वो, पर शायद कुछ अच्छा लगता था।
© Anjaan