"मौन का शोर",,,
हां थोड़ी अंतर्मुखी हूं,
बातें करने से डरती हूं,,
कहना तो बहुत कुछ चाहती हूं,
मगर बोलने से कतराती हूं,,
और जो मुंह का ताला खोल भी दिया,
तो कुछ गलत तो नहीं कह दिया,
ये सोच-सोच खुद को झिड़कती हूं,,
जो चुप रहूं तो अकड़ू हूं,
जो कुछ बोलूं तो भड़कती हूं,,
शोर में मौन ढूंढ लेती हूं,
मैं खुद से ही जुड़ लेती हूं,,
मैं किसी की कहां...
बातें करने से डरती हूं,,
कहना तो बहुत कुछ चाहती हूं,
मगर बोलने से कतराती हूं,,
और जो मुंह का ताला खोल भी दिया,
तो कुछ गलत तो नहीं कह दिया,
ये सोच-सोच खुद को झिड़कती हूं,,
जो चुप रहूं तो अकड़ू हूं,
जो कुछ बोलूं तो भड़कती हूं,,
शोर में मौन ढूंढ लेती हूं,
मैं खुद से ही जुड़ लेती हूं,,
मैं किसी की कहां...