...

2 views

तक़दीर का फ़साना
221 / 2122 / 221 /2122
जाके किसे सुनाए तकदीर का फसाना
उस साँप ने डसा है जिसको था मैंने पाला

दर दर भटक रहा हूँ मंज़िल न कोई मेरी
गर्दिश में आज मेरे तक़दीर का सितारा

माँझी न नाव कोई पतवार भी नहीं है
गिरदाब में फँसा हूँ दिखता नहीं किनारा

कोई नहीं ठिकाना सर को कहाँ छुपाये
आँधी ने है उजाड़ा क्यूँ मेरा आशियाना

मेरी खता बताता कोई नहीं यहाँ पर
कैसा अज़ाब है ये किसका था क्या बिगाड़ा

जितेन्द्र नाथ श्रीवास्तव "जीत "
© All Rights Reserved