...

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आज बहुत याद आई तुम्हारी
आज बहुत याद आई तुम्हारी,
बरसात की बूंदों सी ठंडक सम है तुम्हारी यादें,
शांत से मन में हलचल मचा जाती है तुम्हारी यादें...

क्या बिसात मेरी जो ठहर पाउँ तेरे अक्स के आगे,
मैं....... मैं तो बस ओस की बूंद हूँ,
शून्य है अस्तित्व मेरा,
धधकते सूरज की तपिश के आगे...।

ओस की बूंद सी है मेरी मोहब्बत तुम्हारे लिए,
अस्तित्वमान किन्तु सौम्यता लिए....

तुम्हारी यादें.... समंदर के गर्भ में मिलता सीप के मोती जैसे..।

© निकेता पाहुजा


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