...

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इंतज़ार
आपकी गलियों में आए हम आठों पहर,
लेकिन उन गलियों में आप आए नहीं नजर।

नजर से नजर मिलती गई इस कदर,
सपनों में भी आप दिखने लगे मेरे हमसफ़र।

आशियाना हम दोनों के इश्क के चर्चों का ,
मुनाजिम नहीं था इन्हें भूल जाने का ।

हां अब भी आपकी यादों के सहारे जी रहें है हम,
लेकिन अब आपको देखे बिना ना निकाल पाएंगे ये दम।