...

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हैप्पी दीवाली
कर रौशन दिल मे ख़ुद के प्यार जगा
तू है इंसान ख़ुद को पहले इंसान तू बना

मर के जीना है तुझें या जी कर है मरना
सोच ज़रा मिली ज़ो साँसे यूँ बेकार है करना

कहें "मुर्शद " है बे-वज़ह ये यूँ दीये जलाने
रुह के इंसान तू अपने पहले दीप तो जला

लेकर जन्म इंसान का तू इंसान बना ही कहाँ
ज्ञान पाकर भी तू इस रब का हुआ ही कहाँ

यूँ ख़ाली बातों से नही तू ये लौं मुझमें जगा
चलु बताये तेरे नक्श-ए-क़दम वो इंसान तू बना

अब और ये यूँ झूठे दीप मुझें जलाने नही
असल है ज़ो दीप उसकी वो रौशनी तू बना।

© अनिल अरोड़ा "अपूर्व "