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ज्योति पर्व
फैल रहा जग में अंधियारा
किसे होश है आज यहां
अपनी हस्ती मिटता देखे
ऐसा है कोई जगा कहाँ
आज सभी हैं धन के भूखे
कोन असुर दल रोकेगा
समर मांगती है कुर्बानी
है कोन जो खुद को झोंकेगा
फिर से जग जाए वीर शिवा
इस अंधियारे से लड़ने को
फिरसे कोई बाजी युद्ध लड़े
इस अंधियारा को हरने को
आवाहन हो फिर से सुंग यहाँ
यवनों से मुक्ति दिलाने को
फिर मिहिर भोज तुम आ जाओ
यह ज्योति स्वतंत्र बचाने को
जो अंधियारे से लड़ सकता
जो ज्योति पुंज हितकारी है
जो जल सकता है दीपक बन
इस उत्सव का अधिकारी है
बीन असुर दलों को दले हुए
बिन अंधियारे से युद्ध लड़े
क्या दीपक आज जलाओगे
तुम बिना यसस्वी सिद्ध हुए
© eternal voice नाद ब्रह्म
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