' नौबहार '
चेहरे देखे कई खास थे,
पर उनमें हम-सफर कोई दिखा नहीं,
इस शहरे-दिल की विरानियों में,
अभी तलक मकाँ कोई बसा नहीं!
नगर है ये आँधियों का,
जिसमें शख्स कोई टिका नहीं,
रहे टूटते पत्र शाख से,
परंतु वृक्ष ये गिरा नहीं!
बेचारगी में जीता कल्ब...
पर उनमें हम-सफर कोई दिखा नहीं,
इस शहरे-दिल की विरानियों में,
अभी तलक मकाँ कोई बसा नहीं!
नगर है ये आँधियों का,
जिसमें शख्स कोई टिका नहीं,
रहे टूटते पत्र शाख से,
परंतु वृक्ष ये गिरा नहीं!
बेचारगी में जीता कल्ब...