...

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इश्क़ ए बवाल
जी भर गया है इस इश्क़ ए बवाल से ,
क्यों न कुछ काम- धाम किया जाए।

ये क्या कि रातों दिन उसके नाम की रटन,
क्यों न अपने नाम का मक़ाम किया जाए।

जब उसकी महफ़िल में भी यही बेकरारी है ,
क्यों न कहीं और से दिल ए राहत का सामान लिया जाए।

छोड़ो ये दीवानगी दिन रात की तड़प ,
क्यों न किसी और,कु-ए-बुतां में पायाम‌ दिया जाए।

कु-ए-बुतां=महबूब की गली
पायाम =संदेश

© khak_@mbalvi