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अनजान सी राह
अंधेरा तो हो चुका हैं
क्यों न लौट आ जाऊं मैं
अनजान सी इस राह में
डरना लाज़मी था
जिन्दगी के इस ठहराव से
डूबती हुई सूरज की किरणों से
डरना लाज़मी था
अनजान सी इस राह में
चाँद तारो की इस छाव में
कदम लौट तो चले हैं
डरना लाज़मी था
अनजान सी इस राह में
क्यों न लौट आ जाऊं मैं
अनजान सी इस राह में
डरना लाज़मी था
जिन्दगी के इस ठहराव से
डूबती हुई सूरज की किरणों से
डरना लाज़मी था
अनजान सी इस राह में
चाँद तारो की इस छाव में
कदम लौट तो चले हैं
डरना लाज़मी था
अनजान सी इस राह में
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